किसी ने बड़े कमाल की बात कही है
अगर रिश्तो की गांठे खुल सकती है।
तो उन रिश्तो के धागे पर कैच नहीं चलाते।।
नमस्ते दोस्तों मैं हूं Rjvijay
एक छोटी सी कहानी यह कहानी है महाभारत के वक्त की जब महाभारत का युद्ध चल रहा था।
कौरवों की तरफ से पितामा भीष्म युद्ध लड़ रहे थे। पांडवों की तरफ से सात भगवान श्री कृष्ण दे रहे थे।
कौरवों के सेना में हाहाकार मच जाता था जब अर्जुन का बाढ़ चलता था।
रोज शाम में जब युद्ध खत्म होता था, तो सब अपने अपने शिविर में लौट आते थे, पितामह भीष्म ने भी अपने शिविर पहुंचते थे।
और जब भी पहुंचते थे वहां दुर्योधन उन पर आरोप लगाने के लिए तैयार रहता था जैसे ही भीष्म वहां पहुंचते थे दुर्योधन कहता था । पितामा आप मुझे लगता है।
पूरी ताकत से लड़ते ही नहीं हैं । ऐसा लगता है आप हमारी तरफ से नहीं बल्कि पांडवों के तरफ से युद्ध में लड़ रहे हैं।
आप पांडवों का वध क्यों नहीं कर रहे हैं। रोज शाम में शिविर में पहुंचते ही वो यही आरोप लगाता था। एक दिन पितामा भीष्म वहां पहुंचे दुर्योधन वहां बैठा हुआ था । वाहा पहुंचते ही दुर्योधन फिर से आरोप लगा दिया ।
और पितामह भीष्म उस दिन तंग आ गए उन्होंने अचानक से प्रतिज्ञा ले ली उन्होंने कहा गंगा पुत्र भीष्म में यह प्रतिज्ञा लेता हूं।
कल युद्ध भूमि में उतरूंगा और पांडवों का वध कर दूंगा और जैसे ही उन्होंने प्रतिज्ञा ली दुर्योधन मुस्कुराने लगा खुश हो गया जाकर के अपने भाइयों को बताने लगा।
दोस्तों को बताने लगा कि कल कल तो युद्ध खत्म हो जाएगा कल तो पितामा भीष्मा पांडवों का वध कर देंगे ।कोई भी नहीं बचेगा हमारे दुश्मन नहीं बचेंगे।
यही बात पांडवों के शिविर में पहुंची पांडवों की जो पत्नी थी द्रोपति उसे मालूम चला द्रोपति भगवान श्री कृष्ण के पास गई और जाकर के बोली भगवान हमें बचाइए मेरे पतियों पर संकट आ गया है।
पितामा भीष्म ने ये प्रतिज्ञा ले ली है कि वो पांडवों का वध करेंगे। इस समस्या का समाधान कीजिए । आपकी वजह से ये सारा युद्ध हो रहा है।
तो भगवान श्री कृष्ण ने पहले तो द्रोपति को समझाया कि मेरी वजह से नहीं हो रहा है । ये युद्ध हो रहा है हर किसी की अपने अपने कर्म के वजह से और रही बात समस्या के समाधान की तुझे समाधान जरूर मिलेगा।
भगवान ने द्रोपति को एक उपाय बताया और बोला कि चलो भीष्म पितामा के शिविर में चलते हैं । वहां पहुंचे श्री कृष्ण बाहर खड़े रहे। द्रोपति को अंदर भेजा जब द्रोपति अंदर पहुंची ।
तो वहां पर भीष्म पितामा जो थे ध्यान में मग्न थे । ऊपर वाले को याद कर रहे थे । और वहां जाकर के द्रोपति ने प्रणाम किया और बोली प्रणाम पितामा जैसे ही द्रोपति ने यह कहा ।
पितामा भीष्म ने कहा अखंड सौभाग्यवती भव: अचानक उनके मुंह से ये निकल गया । उन्होंने अपनी आंखें खोली तो देखा सामने द्रोपति खड़ी हुई थी ।
वो संकट में पड़ गए उन्होंने कहा द्रोपति ये तुमने मुझसे क्या करवा दिया । अब से थोड़ी देर पहले मैंने यह प्रतिज्ञा ली है कि मैं तुम्हारे पतियों पांडवों का वध करगा।
और अब मैंने अपने ही वचन से आशीर्वाद दे दिया है कि अखंड सौभाग्यवती भव: मैं तो संकट में पड़ गया हूं।
एक तरफ मैं तुम्हारे पतियों को वध करने की प्रतिज्ञा ले ली है और दूसरी तरफ तुम्हें हमेशा सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दे दिया है।।
ये तुमसे किसने करवाया तुम तो ये नहीं कर सकती । तो द्रोपति ने कहा मैंने ये नहीं किया मुझसे श्रीकृष्ण ने करवाया है।
तो पितामह भीष्म ने कहा भगवान श्री कृष्ण को अंदर लेकर के आओ अंदर श्री कृष्ण महाराज जब पहुंचे तो भगवान को सामने देख कर के पितामा भीष्म ने पहले तो प्रणाम किया ।
और बोले कि महाराज भगवान ये आपने मुझसे क्या करवा दिया । मेरी प्रतिज्ञा को मेरी वजह से तुड़वा दिया । अब मेरी समस्या का समाधान कीजिए ।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आपको खुद मालूम है कि आपके समस्या का समाधान क्या है । पांडवों को बुलाया गया।
जब पांडव आए तो पांडवों से पितामा भीष्म ने वचन ले लिया कि मेरी बात तुम्हें माननी होगी। पांडवों ने कहा ठीक है।
तो पितामा भीष्म ने उनसे कहा कि अर्जुन कल तुम मेरा वध करोगे। अर्जुन ने कहा मैं आप का वध कैसे कर सकता हूं ? पितामा भीष्म ने कहा कि तुम्हारे प्राण मैंने त्याग दिए । लेकिन कल तुम्हें मेरे प्राण लेने होंगे।
और तुम्हें ये काम करना होगा," अर्जुन ने कहा जो आज्ञा" तो उन्होंने कहा मैं आप का वध कैसे कर सकता हूं मैं तो कमजोर हूं आपके सामने ।
पितामा भीष्म ने कहा बिल्कुल मैं जो अपनी पूरी ताकत से लड़ूंगा तो तुम मुझे हरा नहीं सकते । लेकिन एक शर्त है जिससे तुम बच सकते हो तुम अपने सामने किसी नारी को लेकर के आ जाना।
तो पांडवों ने कहा" युद्ध भूमि में नारी कहां से आएगी। तो पितामा भीष्म में जो थे उसने कहा की तुम्हारी सेना में एक शिखंडी जो एक बचपन में सीखंडनी पैदा हुई थी।
उसने बाद में यक्ष की मदद से शिखंडी हो गई तो उस शिखंडी को जिसे तुम शिखंडी कहते हो जिसे मैं शिखंडीनी कहता हूं । उसको अपने सामने लेकर के आ जाना और उसके पीछे से तीर चला देना ।
अर्जुन ने वैसा ही किया । ना तो पितामा भीष्म की प्रतिज्ञा टूटी और भगवान श्री कृष्ण ने सबको अपने अपने संकट से बाहर निकाल दिया।
छोटी सी कहानी life में बहुत बड़ी बात सिखाती है सबसे पहली बड़ी बात सिखाती है कि संस्कार सबसे बड़ी चीज है पांडवों के पत्नी द्रोपति जाकर के पितामा भीष्म को प्रणाम करती है उसको नमस्कार करती है। और वो आशीर्वाद देते हैं। अखंड सौभाग्यवती भव: हमको अपने अपने संस्कार नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि संस्कार जिंदा रहेंगे तो हम जिंदा रहेंगे।
दूसरी बात अगर यही बात कौरवो की पत्नियां कर देती तो शायद उन्हें भी अखंड सौभाग्यवती भव: का आशीर्वाद मिल जाता कौरव भी जिंदा रह जाते हैं।
दूसरी सबसे बड़ी बात ये सिखाती है जिंदगी में हर समस्या का समाधान है इतने बड़े बड़े संकट आए लेकिन महाभारत में हर संकट का समाधान होता चला गया
छोटी सी कहानी जिंदगी में काफी कुछ सिखाती है जिंदगी में सीखते रहे आगे बढ़ते रहें।
एक बार फिर से जो अक्सर मैं आप से कहता हूं अपनी सच्ची मेहनत और अपनों के प्यार के साथ ऊपर वाले के आशीर्वाद के साथ
कर दिखाओ कुछ ऐसा।
दुनिया करना चाहे आपके जैसा।।
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